पूजापाठ का परिचय: भाग 2 — दत्तराज देशपांडे का संगम व्याख्यान

हम लोग पूजा, पाठ, अनुष्ठान इत्यादि क्यों करते हैं ? अधिकांश लोग, विशेष तौर पर शैक्षिक वर्ग, ऐसा सोचता है की क्योंकि हमारे पूर्वज कई पीढ़ियों से ऐसा करते आये हैं, हमें भी उसका अनुसरण करना चाहिए। उन्हें लगता है की वर्षों से चली आ रही इस पद्यति का अनुसरण करने से ही उनकी सांस्कृतिक पहचान बनी रहेगी। किन्तु वास्तविकता में ऐसा नहीं है। कोई भी पूजा या अनुष्ठान का महत्त्व अनुकरण एवं सामाजिक पहचान से परे है। हम किसी को जताने के लिए पूजा नहीं करते हैं कि हम हिन्दू है। पूजा अपनी आत्मिक उन्नति के लिए की जाने वाली प्रक्रिया है। पूजा या अनुष्ठान के बारे में कई मिथ्याबोध से आज के युवा ग्रसित हैं। यह परिचय सत्र हिंदू पूजा और अनुष्ठानों के उद्देश्य एवं महत्त्व को समझाने का एक प्रयास है।


वक्ता-परिचय: –

दत्तराज देशपांडे, बैंगलोर से ऋग्वेद के घनापथी और दशग्रंथी हैं। उनकी पूरी शिक्षा मौखिक परंपरा या गुरु-शिष्य परंपरा के माध्यम से हुई है। वे कर्नाटक संस्कृत विश्वविद्यालय से स्वर्ण पदक विजेता हैं। वर्तमान में वह भारतीय शिक्षण मंडल में पूर्णकालिक स्वयंसेवक हैं और गुरुकुल शिक्षा प्रणाली के पुनरुद्धार की दिशा में कार्यरत हैं। आगे…


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